शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

* समझो सार *

महका पुहुप उपवन में, चुरा लाई बयार ।
भंवरा जो मचल गया , वो दोषी क्यों यार ।।
चला चुराने महक को, ले कर हरख अपार ।
भंवरे का दोष नहीं, बहका गई बयार ।।
डाली पर वो नाचता, भाया खूब गुलाब ।
सुध-बुध अपनी खो गया, भंवरा बेहिसाब ।।
खुश्बू अपनी समेट लो, जिस पर तुमको नाज ।
बिखरी जो माहोल में , गिर जाएगी गाज ।।
भंवरे है मतवाले , मद पर मरते यार ।
मद को अपने रोक लो, या फिर समझो सार ।।

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