रविवार, अप्रैल 13, 2014

भटनेर किले पर कुछ और राजस्थानी कविताओं का हिन्दी अनुवाद

भटनेर किले पर मेरी कुछ और राजस्थानी कविताओं का हिन्दी अनुवाद यहां तीसरी किस्त में प्रस्तुत है ।

भटनेर-6
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युद्ध में
हर बार
मैं ही जीता
या फ़िर मां
मेरी ज़मीन
जो धारे रही मुझे
हर हार-जीत के बाद भी ।

राजा
राजाओं की दम्भी सेना
मनाते रहे ज़श्न
दरबार ओ चौगान में
अभिमान में
जो हो भी जाता था
कई बार चकनाचूर ।

यूं हारने
जीतने वाले की
संज्ञाओं को
बदलते देखा है मैंने
नहीं बदली
फ़कत मेरी ज़मीन
बहुत कुछ ले गए
मेरी देह से नो्च-नोच
परन्तु नहीं ले जा सके
ढो कर मुझे
मेरी ज़मीन को
जिस पर
खडा़ हूं मैं भटनेर
सदियॊ से अटल ।
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भटनेर-7
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मैंने देखा है
साफ़-साफ़ देखा है
युद्ध में कभी भी
नहीं जीतता आदमी
फ़िर चाहे वह
राजा हो या रंक
जीतता है
फ़कत काल
जो लील जाता है
दमकती संज्ञाओं को
समूचे लाव ओ लश्कर के साथ ।

मैंने
बहुत बार देखा है
मानवी दम्भ को
जो कभी नहीं रहा शेष
शेष रही फ़कत ज़मीन
जो आज भी है जरूरी
मेरे भटनेर होने की
अनंत यात्रा में ।
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भटनेर-8
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बच्चे कल हैं
आज भी और अब भी
सच है सकल


उतरता है बल
उनके यहां
भटक जाता है
बुद्धि से पहले
पहुंच जाता है
फ़ड़फ़डा़ती भुजाओं में ।

बल का
भुजाओं में पहुंचना
घातक है बहुत
देखा है मैंने प्रत्यक्ष
भुजाएं फ़ड़फ़डा़ती हैं
टकराती हैं
देती हैं जन्म
भयंकर युद्ध को
जो कर देता है
सुघड़ घट
भविष्य की यात्रा पर निकले
भटनेरों को खंडहर
जो हूं मैं आपके प्रत्यक्ष आज ।

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