शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

[<>] कयास बहुत हैं [<>]

कल क्या होगा
अच्छा-बुरा
यह-वह 
कयास तो बहुत हैं
मेरे-तुम्हारे पास 
उन में मगर
किन्तु-परन्तु बहुत हैं !

सायास न भी हो
अनायास तो कुछ न कुछ
हो ही सकता है
मसलन
सच्चाई को मिल जाए
उसकी उज्ज्वल कीमत
किन्तु देगा कौन ?

कल शायद
नेता के वादे
हो जाएं पूरे
पूरे हो जाएं
सपने अधूरे
पूरा का पूरा बजट
लग जाए योजना पर
परन्तु लगाएगा कौन ?

कल हो सकता है
वक्त पर आ जाए
रेल मेरे कस्बे में
देशद्रोहियों को
सरे राह लग जाए फांसी
डाले गए वोट की कीमत
पहचान ली जाए
मगर पहचानेगा कौन !

कल तो 


यह भी हो सकता है
पेड़ों पर लगने लगें रोटियां
मिलने लगें डिब्बा बंद घर
शरीर पर चमड़ी की जगह
बनने लगे कपड़ा
यदि ऐसा हुआ तो
देश का बजट कैसे बनेगा ?
यदि देश का बजट
न बना तो
नेता चलेगा कैसे ?

कल कुछ न कुछ
होगा ज़रूर
और नहीं तो
तारीख तो बदल ही जाएगी
तारीख बदली तो
साल महीने भी बदलेंगे
फिर तो
आ ही जाएगा नया कैलेण्डर
जो लटकेगा दीवार पर
नत्थू की पगार की तरह ।

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