शुक्रवार, अप्रैल 25, 2014

*परेशान कुदरत*

सदियों से 
मेहरबान रही
हम पर कुदरत
अपने हजार हाथों से
लुटाती रही हम पर 
अपना अकूत वैभव 
हम नहीं रख सकै धैर्य
झपट पड़े उस पर
सब कुछ लूट
अपना घर भरने
धरा से आकाश तक
पेड़-पहाड़
नदी-झरने
सब हथिया लिए
परेशान कुदरत
बिफर पड़ी
उसके आंसूओं में
बह गया सब कुछ !

सच ही कहा है किसी ने
लाचार के आंसूओं में
बहुत ताकत होती है
टिक सके कोई
उस के सामने
इतनी किस में
माकत होती है !

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