*तानों की तपिश में आकाश*
ताउम्र तपता रहा
जिन तानों की तपिश में
नहीं थे वे बादल
तनिक भी उसके वश में
बादलों का घर
आकाश जो नहीं है
तकता रहता है जिसे
उसकी तो अपनी
हमराह वो जमीं है
आवारा हैं बादल
आते-जाते उदंड
मानते कहां हैं
आकाश के हिस्से
न बारिश है न नमीं है
पूछो तो सही कभी
क्या ये कम कमीं है !
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