'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 13, 2014
बेचारे
जो गए थे लाने
किसी के लिए
तोड़ कर चांद-तारे
वे आज पड़े हैं
खुद टूट कर बेचारे !
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