'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 13, 2014
हकीक़त
रात और दिन
सामना था
मौन मगर प्रत्यक्ष
एकाधिक सपनों का
जो आ धमकते है
हकीकत में !
हकीक़त में
सपनें थे
सपनों में मगर
हकीक़त नहीं थी !
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