'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 13, 2014
*अंतस की जाजम*
अंतस की जाजम
पसरी मनगत सारी
मुखरित होने ढोती
अविरल लाचारी
जाजम का उलझा
कुल ताना-पेटा
तार-तार है भारी
मन की मन ही
बुने-उधेड़े
व्यथा गोटा-तारी
मन की उधड़ी
जाजम पर अब
लगे ना टांका-कारी
मन की सुन ले
मन ही कोई
वरना है लाचारी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें