गुरुवार, अप्रैल 10, 2014

शेष थी खुशी

इन दिनों
उन्मुक्त मुस्कुराना
मैंने ही छोड़ा है
वरना जग में 
सारी खुशियों का
अंत तो नहीं हुआ ।

मेरे घर
मातम को आए लोग
अपने घर से
खूब हंस कर आए होंगे
उन के यहां तो
नहीं था ग़म
मेरे ग़म को
पुख्ता करने के लिए
उन्हें भी औढ़नी पड़ी
कुछ पल के लिए मायूसी ।

मेरे घर
मातम मना कर
सांत्वना व्यक्त कर
अपने घर पहुंच
बहुत खुश हैं
मेरे मित्र
दूर के रिश्तेदार
कि चलो आज
वक्त निकाल कर
एक रस्म निभा आए


अपने मित्र के घर
दुख जता आए !

मेरे घर के बाहर
शेष थी खुशी
जिसे बहुत से लोग
लूट रहे थे
वह मेरी नहीं
उनकी अपनी थी
जिसे वे लोग
जी रहे थे !
.

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