'कागद’ हो तो हर कोई बांचे….
रविवार, अप्रैल 13, 2014
सफ़र
राह मिली नहीं
न हुई पूरी चाह
बिना चले ही
सफ़र ज़िंदगी का
सिफर हो गया
फिर भी कहते हैं लोग
सम्भल कर चलना
आगे का सफ़र
जरा कठिन है भाई
अब तलक जो रही
वह देह भी आगे
नहीं रहेगी संग
जरा सम्भल कर भाई !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें