मैं पंछी
कहां बैठता हूं
एक डाल
उड़ उड़ जाता हूं
जंगल दर जंगल
पेड़ दर पेड़
शाख दर शाख
इस में
उपक्रम चाहे पंखों का है
हौसला तो पेट ही देता है !
पेट दिखाता है दिशाएं
मौन आंखे
देखती रहती है आगत
पंख फड़फड़ा कर
उड़ा ले जाते हैं
दूर देश
याद रहता है अंतस को
अपना आसमान
अपना पेड़
अपना घौसला
अपनी टहनी
अपनी वह ज़मीन
जिस पर खड़ा है
अपने वाला
वह बूढ़ा पेड़ !
चौंच का भक्षण वही
जो पेट की चाहत
रसना का वाक वही
जो ज़मीन की चाहत
ज़मीन ने उचरवाया
राम-राम !
अल्लाह-अल्लाह !!
वाहे गुरु-वाहे गुरु !!!
यीशु-यीशु !!!!
रसना ने उचारा !
पेट का पेटा भरते ही
गुलाम हुई स्वक्रियाएं
पंख छोड़ गए साथ
मीत हुए क्षुधा के
मूक संवेदानाएं
निहारती रहीं अंतस में
अपना पेड़-अपना घौसला !
कहां बैठता हूं
एक डाल
उड़ उड़ जाता हूं
जंगल दर जंगल
पेड़ दर पेड़
शाख दर शाख
इस में
उपक्रम चाहे पंखों का है
हौसला तो पेट ही देता है !
पेट दिखाता है दिशाएं
मौन आंखे
देखती रहती है आगत
पंख फड़फड़ा कर
उड़ा ले जाते हैं
दूर देश
याद रहता है अंतस को
अपना आसमान
अपना पेड़
अपना घौसला
अपनी टहनी
अपनी वह ज़मीन
जिस पर खड़ा है
अपने वाला
वह बूढ़ा पेड़ !
चौंच का भक्षण वही
जो पेट की चाहत
रसना का वाक वही
जो ज़मीन की चाहत
ज़मीन ने उचरवाया
राम-राम !
अल्लाह-अल्लाह !!
वाहे गुरु-वाहे गुरु !!!
यीशु-यीशु !!!!
रसना ने उचारा !
पेट का पेटा भरते ही
गुलाम हुई स्वक्रियाएं
पंख छोड़ गए साथ
मीत हुए क्षुधा के
मूक संवेदानाएं
निहारती रहीं अंतस में
अपना पेड़-अपना घौसला !
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