सोमवार, मई 31, 2010

कालीबंगा: कुछ चित्र-1 / ओम पुरोहित कागद









रेल में "कुचरणी" कविता-संग्रह का लोकार्पण

कालीबंगा: एक चित्र

इन ईंटों के
ठीक बीच में पड़ी
यह काली मिट्टी नहीं
राख है चूल्हे की
जो चेतन थी कभी

चूल्हे पर
खदबद पकता था
खीचड़ा
कुछ हाथ थे
जो परोसते थे।

इसी सीरीज की अन्य कविताओं को पढ़े...
"कविता-कोश" में या देखें एक साथ २१ कविताएं "कृत्या" में....
और कुछ सवालों के जबाब देखिए "कांकड" पर


16 टिप्‍पणियां:

  1. आपरी सैंग कविता सांतरी है। काळीबंगा री कवितावां री एक एकल पोथी छपावो। बहोत महताऊ काम होसी।

    अगाऊ बधाई।

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  2. एक चित्र उभर आता है इन शब्दों से.......खीचड़े की सोरम नथुनों में समा जाती है.
    राजस्थानी में पढ़ें या फिर हिंदी में , बिम्ब फीके नहीं पड़ते .
    आभार.

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  3. आदर जोग प्रणाम
    आप री ''काळीबंगा '' माथे रचनावा पूरो इतिहास दर्शन करवा देवे है , उण इतिहास ने ओलिया माय ढाल इया लागे के इतहास सामे दिखे है जीके ने आंग्लिया फेर देख लो , कविताव बंच एक बारी तो पाठक उन युग माय पूग जावे है ,इण सारु आप ने मोकळी मोकळी बधाई . जीको फेरु म्हणे पढ्न रो मौको मिल्यो ,
    सादर

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  4. राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगां तहसील का एक गांव है कालीबंगां।
    [वैदिक सरस्वती नदी [घग्घर] के किनारे स्थित है।]
    जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर इस गांव के प्राचीन थेहड़ से 1962 मे हुई खुदाई मेँ 3000 से 5000 ईपू. के पुरातात्विक अवेशेष मिले हैँ।

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  5. बहुत सुंदर लगी रचना, चित्र मनमोहक ओर मस्त जी

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  6. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है, रेल में लोकार्पण भी अनोखा है!

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  7. KHUDA KARE AAP KI YE RAIL YOHIN CHALTI RARHE .
    SANDAR , JAANDAR

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  8. KHUDA KARE AAP ki ye RAIL YUHIN CHALTI RARHE .
    SANDAR , JAANDAR

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  9. ओम जी आपको पढना एक सुखद अनुभव है और इस अनुभव से गुजरने को बार बार जी करता है...
    नीरज

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  10. बहुत सुंदर लगी रचना, चित्र मनमोहक

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  11. rajsthaan ki mitti hi aisi hai ki vahaan ek se ek achchhe kavi samane aa rahe hai. kavita parh kar khushi hui.

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  12. वाह ओमजी
    रेल में "कुचरणी" कविता-संग्रह का लोकार्पण … ग़ज़्ज़ब्ब !
    … और कविता ? ख़ूब है जी ख़्ख़ूब !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  13. 'कुचारनी' के लोकार्पण पर बधाई ! और एक नए कलेवर में आपका ब्लॉग देखकर बहुत अच्छा लगा.

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