सोमवार, जुलाई 16, 2012

माँ की भाषा

*माँ की भाषा*
माँ ने जो दी भाषा
उस मेँ
बहुत मिठास था
अपार था प्यार
सार था जगत का
तभी तो
सिमट आते थे
सारे सुख
सपने जगत के
माँ की गोद में ।

आज हम ने
सीख ली हैं
बहुत सी भाषाएं
भाषाओं पर आरूढ़
फैल गया है जगत
करीने से चहुंदिश
सज गए हैं सुख
मगर नहीं है
माँ की भाषा
तभी तो लगता है
कितने सिमट गए हैं
सुख जगत के !

माँ ने कहा था
जड़ हो या चेतन
सब को करो प्यार
सब भूखे हैं प्यार के
प्यार में बंधा
लौट आता है
सीमाएं तोड़ कर
माँ !
क्यों नहीं लौटी तुम
नहीं दिखा शायद तुम्हें
मेरे परिवेश में
कहीं भी प्यार !

मुझे याद है
तुम ने कहा था
यदि इस घर में
रहेगा सम्पत और प्यार
तभी रहूंगी मैं !

1 टिप्पणी: