गुरुवार, जून 06, 2013

मेरे भीतर अंधेरा

मैंने सुना था
अंधेरों की तरफ
भागती है रोशनी
उस के आगमन पर
अंधेरे सिमट जाते हैं
पसर जाती है रोशनी !

रोशन होता है
आसमान में सूरज
मेरे भीतर से निकल
पसर जाता है अंधेरा
मेरे ही सामने
परछाई बन कर
मुझ तक आ कर
क्यों रुक जाती है
जग में चमक बिखेरती
बेखोफ़ रोशनी
हर ओर से
मेरी ही ओर
क्यूं उतर आता है
घनघोर अंधेरा !

मेरे ही भीतर है
शायद अंधेरा
फैल जाता है
बाहर आ कर
जो बड़ा है
बाहर की रोशनी से !

आओ !
ले कर एक दीया
भीतर बैठो तुम
शायद तुम से हो जाए
मेरा भीतर रोशन
शायद तब छोड़ दें
मेरी ओर आना अंधेरे !

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